शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

व्यंग्य : आधुनिक बहू


    लियुग की एक विशेष कलाकृति है आधुनिक बहू। विवाह से पहले अपने मायकेवालों का जीना हराम करने के बाद ये आधुनिकता का झंडा लिए अपने ससुराल में प्रवेश करती है। ससुराल आकर ससुरालवालों का सांस लेना दूभर करना इसका प्रथम उद्देश्य रहता है। ससुराल में प्रवेश करने के बाद बहूरानी पत्नी परमेश्वरी के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं और अपने झूठे आँसुओं का सागर बहाकर अपने पति परमेश्वर को ससुरालवालों के खिलाफ भड़काने जैसे पुनीत कार्य में सक्रिय हो जाती हैं और इसके लिए विधिवत शिक्षा देना आरंभ कर देती हैं। पति परमेश्वर भी अपनी पत्नी परमेश्वरी की बातों को कबूतर की भांति आँख बंदकर पूर्णत: स्वीकार करता रहता है। कलियुगी संस्कार तो इनमें कूट-कूटकर भरे होते हैं। जब घर के सब लोग दैनिक कर्मों से निवृत हो लेते हाँ तब आधुनिक बहू की भोर होती है। आधुनिक बहु का कर्म क्षेत्र घर की रसोई नहीं फेसबुक, व्हाट्सएप व अन्य सोशल मीडिया के मंच होते हैं जिनपर ही दिन-रात इसके ख्याली पुलाव पकते रहते हैं। यदि भूल से भी इसे कुछ काम करने को कह दिया जाए तो ये दुनिया की सबसे बड़ी पुजारिन बनकर पूजा-पाठ करने को आसन जमाकर बैठ जाती है। अगर ससुरालवाले ज्यादा रोका-टोकी करने की भूल करते हैं तो बात-बात पर आत्महत्या करने की ये धमकी देती हैं तथा दहेज प्रताड़ना की शिकायत कर सबको जेल में चक्की पिसवाने का खौफ दिखाती हैं। बेचारे ससुरालवाले अपने परिवार की बदनामी के डर से शांत होकर अत्याचार सहते हुए अपमान की चक्की पीसते रहते हैं। घर में बाहर से कोई मेहमान आए तो ये भोली-भाली नारी के रूप में अवतरित हो जाती है और मेहमान की खूब आवाभगत करती है ताकि समाज में सब इसके भलेपन के गुण गाए जाएँ और इसका सामाजिक पक्ष मजबूत बना रहे।जबकि ससुरालजनों के मुँह में क्लेश करके रोटी का निवाला तक जाना मुश्किल कर देती है, ताकिवे अवसाद का शिकार हो इस संसार को राम-राम कर जाएँ। धीमे-धीमे आधुनिक बहू अथवा पत्नी परमेश्वरी का मौन समर्थन इसके पति परमेश्वर भी करने लगते हैं और पति परमेश्वर को अपने माँ-बाप, भाई-बहन जैसे रिश्ते महत्वहीन लगने लगते हैं। उसे उसका परिवार उसके उज्ज्वल भविष्य में रोड़ा दिखने लगते हैं। एक दिन ऐसा भी आता है जब आधुनिक बहू द्वारा ससुरालवालों को ससुराल से विस्थापित कर अपने मायकेवालों को स्थापित कर दिया जाता है। यह देख समाज धन्य हो जाता है और आधुनिक बहु अपनी विजय पर मंद-मंद मुस्कुराती है।


लेखिका : संगीता सिंह तोमर 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

कविता : हर्षनाद


एक दिन अंतर्मन में
उठी एक इच्छा कि 
पूछूँ प्रभु से 
एक छोटा सा प्रश्न कि
क्यों मेरी भक्ति के बदले
देते हो प्रभु 
उलझनें, परेशानियां और
संघर्ष से भरा ये जीवन
अचानक ही अंतर्मन में 
गूँजी किसी की मधुर ध्वनि
लगा कि जैसे 
प्रभु कह रहे हों कि
जो संतान होती है 
मुझे अति प्रिय
लेता हूँ उसकी परीक्षा
उसे संघर्ष भरे जीवन से 
तपाकर बना डालता हूँ 
बिलकुल खरा सोना
मेरी संतान होने का 
मिलना चाहिए 
इतना तो सौभाग्य उसे
यह सुनते ही
मेरे अंतर्मन ने 
किया हर्षनाद 
और प्रभु द्वारा प्रदत्त
उस सौभाग्य को
सहर्ष स्वीकार किया।
लेखिका : संगीता सिंह तोमर
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