शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

शनिवार, 5 मई 2012

संस्कृति (लघु कथा)



     पने पिता जी के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में होम टाऊन जाने के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. पिता जी ट्रेन के आने के निश्चित समय का पता लगाने के लिए इंक्वारी रूम की ओर चले गए. अकेलेपन को दूर करने के लिए सामने बैठी महिला से बतियाने का मन किया, जो देखने में काफी सभ्य सी लग रही थी व दो छोटी लड़कियों, जिनकी उम्र लगभग 10-11 वर्ष के लगभग थी, के साथ बैठी हुई थी.
उनसे बातचीत का सिलसिला चला, तो उन्होंने बताया, "मेरे पति अमेरिका में डॉक्टर हैं. मैं अमेरिका से भारत रहने आई हूँ और अपनी दोनों बेटियों के साथ अपने शहर लखनऊ जा रही हूँ, अब वहीं इन दोनों की आगे की पढ़ाई होगी." 
मैंने उनसे आश्चर्य से पूछा, "भारतीय तो शिक्षा ग्रहण के लिए विदेश जा रहे है और आप अपनी बच्चियों को लेकर अमेरिका से भारत वापस आ गईं?" 
वो बोलीं, "पाश्चात्य संस्कृति बहुत ही उन्मुक्तापूर्ण है. मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटियाँ अपनी महान भारतीय संस्कृति में पलें-बढ़ें."
तभी अचानक एक अर्ध-नग्न कन्या पारदर्शी वस्त्र धारण किए उनकी सीट के सामने आकर खड़ी हो गई और बोली "एक्सक्यूज मी मेम! वुड यू प्लीज़ मूव अ विट? आइ हैव टू सिट हियर."
उस कन्या को देखकर उनके मुख से अनायास ही ये शब्द निकल पड़े, "हे भगवान अब मैं अपनी बच्चियों को लेकर भारत से भला और कहाँ जाऊँ?"
***चित्र गूगल बाबा से साभार***

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