शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

वरदान (लघु कथा)

    
    वीन अपने माता-पिता से मिलकर  अपनी गर्भवती पत्नी के साथ वृद्धाश्रम से वापस घर को चल दिया. उसके माता-पिता नम आँखों से अपने बेटे व बहू को जाते हुए देख रहे थे.व्यस्त दिनचर्या के कारण नवीन के पास अपने माता-पिता के लिए समय ही कहाँ बच पाता था सो महीने में एक बार उनकी खैर-खबर लेने या यूँ कहें कि माँ-बाप जिन्दा है या नहीं यह जानने के लिए वृद्धाश्रम की सैर करने पहुँच जाता था. नवीन और उसकी पत्नी कार में बैठे हुए अपने घर की ओर चले जा रहे थे. तभी नवीन की नज़र गाड़ी में स्थापित छोटी सी गणेश जी की प्रतिमा की ओर गई. वह हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा "हे गणेश जी मुझे अपने जैसे ही आज्ञाकारी पुत्र का वरदान दें, जो अपने माँ-बाप की सेवा करे." नवीन गणेश जी का नाम जपते-जपते अपनी पत्नी के कंधे पर सिर रखकर सो गया.
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